नस्लवाद और हमारी दोगली मानसिकता

एज़ाज़ क़मर, एसोसिएट एडिटर-ICN
नई दिल्ली। “पृथ्वी पर स्वर्ग” जैसी कल्पना को साकार करने का दावा करने वाली अमेरिकी सरकार का मत है,कि वह दुनिया का सबसे बड़ा समतामूलक, स्वतंत्रतामूलक और न्यायमूलक राष्ट्र है,उसका स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी विश्व की सारी मानव जाति के मानवाधिकारो की रक्षा का प्रतीक है।
तरक्की और ताकत के नशे मे चूर अमेरिका चीन, पाकिस्तान, ईरान और तीसरी दुनिया के देशो को मानवाधिकार के नाम पर धमकाता रहता है,उन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाने की बात करता है,अगर दूसरा देश उसकी बात ना माने तो वह अपने आई०एम०एफ० (IMF) और एफ०ए०टी०एफ० (FATF) जैसे पालतू संगठनो की मदद से आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उस देश को तबाह और बरबाद कर देता है।
इज़राइल और पूंजीवादी पश्चिमी देश दूसरे देशो के प्राकृतिक स्रोतो और आर्थिक संपदा का दोहन करने के लिये वहां पर अराजकता फैलाते रहते है,ताकि सरकार को दबाव मे लाकर स्थानीय संसाधनो पर हाथ साफ करके अपने मुद्रा-भंडार को बढ़ाया जा सके,यदि पीड़ित देश प्रतिरोध करने का साहस करे तो उसे मानवाधिकार के नाम पर प्रतिबंधित करके आर्थिक रूप से पंगु बनाते हुये राजनैतिक रूप से अलग-थलग किया जा सके।
इज़रायल और पश्चिमी देशो की खुफिया एजेंसियां अपने मित्र देशो पर दबाव बनाए रखने और विरोधी देशो मे सत्ता परिवर्तन के लिये लगातार विरोध प्रदर्शन करवाकर अराजकता फैलाती रहती है,जिसका उदाहरण अरब देशो मे चल रही अरब-स्प्रिंग है, जिसके चलते दर्जनभर अरब देश तबाह हो गये और आगे भी दूसरे देशो की बरबादी की संभावना बनी हुई है, कमोबेश यही स्थिति सेंट्रल तथा दक्षिणी अमेरिका मे है और वहां पर क्यूबा-वेनेजुएला जैसे अमरीका-विरोधी देशो को बरबाद करने का षड्यंत्र चल रहा है।
हांगकांग जैसे समृद्ध क्षेत्र को अमरीका और पश्चिमी देश तबाह करने पर तुले हुये है,वहां पर लगातार चीन विरोधी प्रदर्शन हो रहे है,किंतु सरकार नागरिको के ऊपर बल प्रयोग से बच रही है,ताकि पश्चिमी देशो को मानवाधिकार के नाम पर प्रोपेगंडा करने का अवसर ना मिले।
मानवाधिकारो का स्वयंभू बेताज बादशाह अमेरिका अपने निहत्थे प्रदर्शनकारियो के वाइट हाउस को घेर लेने से व्यथित हो गया,उसके बड़बोले राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रदर्शनकारियो को खूंखार कुत्तो से कटवाने और खतरनाक हत्यारो से निशाना बनाने की धमकी दी,फिर प्रदर्शनकारियो पर कोई असर ना देख कर उन्होने काले कानून (Insurrection Act, 1807) के लागू करने की चेतावनी देकर अमरीका का मानवता विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है।
यद्यपि राष्ट्रपति ट्रंप के सेना की तैनाती को लेकर दिये गये बयान से सैनिक अधिकारी असहमत दिखाई दिये,फिर भी भविष्य मे सेना तैनाती की संभावना बहुत प्रबल है,हालांकि मेजर जनरल थॉमस कार्डन (Thomas Carden) ने राष्ट्रपति के बयान को जल्दबाजी बताते हुये नजरअंदाज कर दिया,किंतु टीवी चैनल सी०एन०एन० पर ह्यूस्टन पुलिस चीफ आर्ट अज़ेवेडो (Art Acevedevo) ने अमरीकी राष्ट्रपति को अपना “मुंह बंद रखने” की सलाह देखकर ट्रंप को नानी याद दिला दी।
कोरोना वायरस की महामारी से पीड़ित सारी दुनिया अपने घरो मे बंद थी,तभी अप्रैल के माह मे चीन की सड़को पर भूख और बीमारी से तड़प रहे अश्वेतो की पिक्चरे सोशल मीडिया पर गर्दिश करने लगी, जिससे अफ्रीका के देशो मे इतनी नाराज़गी पैदा हुई,कि चीन के सबसे बड़े साझेदार इथोपिया ने चीन से अपने संबंध लगभग तोड़ ही लिये है।
अश्वेतो के विरुद्ध घृणा के मामले मे भारत एशिया मे सबसे आगे है और दिल्ली को नस्लवादी राजधानी कहना अतिश्योक्ति नही होगा,ग्रेटर-नोएडा के एक नशेड़ी (छात्र) के घर से गायब हो जाने के बाद स्थानीय लोगो ने अफ्रीकी मूल के छात्रो के घर मे घुसकर उनके फ्रिज की इसलिये तलाशी ली,क्योकि उन्हे शक था कि ‘यह अश्वेत गुर्जर छात्र की हत्या करके उसका मांस खा रहे होगे’ अर्थात “अश्वेत नरभक्षी (Cannibal) होगे”।
25 मार्च 2017 को ग्रेटर-नोएडा के पास स्थित क्षेत्र कासना के निवासी छात्र मनीष खारी की संदेहास्पद परिस्थितियो मे मृत्यु हो गई थी,उसके परिवार वालो का मानना था कि वह नाइजीरिया छात्रो की संगति मे आकर नशा करने लगा था,स्थानीय लोगो मे आक्रोश था कि पुलिस नाइजीरिया ड्रग-तस्करो के खिलाफ कार्यवाही नही कर रही है और नशे का कारोबार ग्रेटर-नोएडा मे धड़ल्ले से चल रहा है।
27 मार्च 2017 को सत्तारूढ़ दल से संबंधित एक संगठन के कार्यकर्ताओ ने कासना से परी चौक तक एक कैंडल मार्च निकाला,यह प्रदर्शन परी चौक के निकट पहुंचकर समाप्त होने ही वाला था, तभी कुछ कार्यकर्ताओ की नज़र सड़क पर चल रहे तीन नाइजीरियाई छात्रो पर पड़ी।पहले उत्तेजक नारो और फिर गालियो (अपशब्दो) का दौर शुरू हुआ,उसके बाद उग्र-भीड़ छात्रो को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने लगी,23 वर्षीय प्रेशियस (Precious Amalawa) और उनके 21 वर्षीय छोटे भाई एंड्योरेंस (Endurance Amalawa) ने अंसल प्लाजा मे घुसकर कर अपनी जान बचाई।
प्रेशियस और उसका भाई एंड्योरेंस एन०आई०यू० (Noida International University) से अलग-अलग विषय (राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र) मे स्नातक की शिक्षा अर्जित कर रहे थे,मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित इन छात्रो ने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि यह दिन देखने को मिलेगा,सौभाग्य से इनको गंभीर चोटे नही लगी,तीसरा छात्र इबजिया (Ibgiya Malu Chukwuma) भी अपनी सतर्कता के कारण बच गया और उसको मामूली चोटे लगी।
एन०आई०यू० से बी०बी०ए० (BBA) की पढ़ाई पढ़ रहे 24 वर्षीय नाइजीरियाई छात्र इमरान उबा (Imran Uba) अधिक सौभाग्यशाली नही रहे,वह अपने बहन के घर से ऑटो रिक्शा मे बैठकर वापस आ रहे थे और आइसक्रीम खाने के सपनो मे मग्न थे, तभी परी चौक के पास भीड़ ने उन्हे ऑटो रिक्शा मे से खींचकर पीटना शुरू कर दिया।इमरान को अस्पताल मे भर्ती करवाया गया और वह अपनी जेब से ₹16000 का अस्पताल बिल चुका कर घर आये और काफी समय तक उन्होने निजी डॉक्टर से इलाज करवाया,इस घटना के तीन साल गुज़र जाने के बाद भी आज तक अफ्रीकी मूल के छात्र ग्रेटर-नोएडा मे रहने से डरते है,उन्हे हर पल अपनी सुरक्षा का भय सताये रहता है, जबकि हमलावार अपराधी खुलेआम सीना ठोक कर सड़क पर घूमते रहते है।
दक्षिण दिल्ली के वसंत विहार इलाके मे 21 मई 2016 को एक दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई थी,कांगो का छात्र ऑलीवर (Masonda Ketada Olivier) एक पार्टी से वापस लौट रहा था,उसने एक ऑटो रिक्शा लेनी चाहिये, इसी बीच कहासुनी इतनी बड़ी कि स्थानीय लोगो ने उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी।
भारत मे भीड़ द्वारा हत्या करना एक मामूली घटना होती है,बल्कि पिछली एक शताब्दी से मानव हत्या करने का यह सबसे आसान तरीका बन गया है,क्योकि हत्यारे भारत सरकार की इच्छाशक्ति को भांप चुके है,कि सरकार भीड़ के खिलाफ एक्शन नही लेना चाहती है।
02 अक्टूबर 2014 को पश्चिमी अफ्रीका के देश बुर्किना फासो (Burkina Faso) का एक 20 वर्षीय छात्र (Guira) ग़बून (Gabon) देश के दो छात्रो (Mapaga तथा Yohan) के साथ मेट्रो मे यात्रा कर रहा था,तभी एक यात्री ने उनका फोटो खींचकर मज़ाक बनाना शुरु कर दिया, छात्रो ने विरोध किया तो उग्र भीड़ ने उनके ऊपर महिला से छेड़खानी का आरोप लगाकर उन्हे बेरहमी से पीट-पीटकर जख्मी कर दिया, जबकि ट्रेन के उस कोच मे कोई महिला थी ही नही और हिंसा की यह घटना मेट्रो के अति सुरक्षित पुलिस बूथ के निकट घटित हुई।
वर्ष 2014 मे अफ्रीकी मूल का एक व्यक्ति बैंगलोर मे एक एक्सीडेंट करके भाग गया, भीड़ ने वहां से गुज़र रही एक अफ्रीकी मूल की (तंजानिया निवासी) महिला को गाड़ी से बाहर निकालकर निर्वस्त्र कर दिया,फिर उस महिला की गाड़ी को आग लगा दी,बड़ी मुश्किल से उस महिला की जान बची।
2013 मे दिल्ली के कानून मंत्री ने खिड़की एक्सटेंशन के पास एक भीड़ ले जाकर अश्वेत महिला के घर के सामने खूब हंगामा किया और उन्होने अफ़्रीकी मूल की महिलाओ के ऊपर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाया,2013 मे गोवा मे एक अफ्रीकी की भीड़ द्वारा हत्या करने की घटना के बाद स्थानीय राजनीतिज्ञ ने ड्रग-तस्करी का आरोप लगाते हुये अश्वेतो के विरुद्ध “कैंसर” जैसे भद्दे शब्दो का प्रयोग किया,
भारत मे विशेषकर राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रो मे निर्दोष अफ्रीकी और मंगोलियन मूल की महिला छात्रो पर वेश्यावृत्ति और पुरुष छात्रो पर नशाखोरी तथा तस्करी का आरोप लगाना एक साधारण सी बात बन गई है,जो भारतीय समाज की नस्लवादी मानसिकता का प्रमाण है।
नॉर्थ कैंपस के विजयनगर क्षेत्र मे 22 मार्च 2020 को एक 25 वर्षीय मणिपुरी महिला जनता कर्फ्यू के कारण सब्जीवाले को खोजती हुई सड़क पर चल रही थी,तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने अचानक उनके पास आकर अपना स्कूटर रोका और उनके मुंह पर पान की पीक थूककर जोर से चिल्लाया;
“कोरोना-कोरोना!”,
“यहाँ है कोरोना!”,
“यह है कोरोना!”,
फिर 40 वर्षीय मॉडल टाउन निवासी गौरव वर्मा भाग गया।इस घटना से वह महिला सकते मे आ गई,क्योकि पान की पीक उसके सर, मुंह और टीशर्ट को गंदा कर गई थी,फिर वह गुस्से मे कुछ दूर तक उस पुरुष के पीछे दौड़ी,लेकिन स्कूटर पर सवार होने के कारण वह पुरुष भाग गया, हालांकि गौरव को बाद मे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा को होली का जश्न मना रहे युवाओ की टोली ने कमला नगर मे गुब्बारे मारकर कहा; “भाग यहाँ से कोरोना वायरस!”,दिल्ली मे पूर्वोत्तर के छात्रो की समस्याओ को उठाने वाली समाज-सेविका एलेना (Alana) के विचारो का भावार्थ है,कि “पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राओ का दिल्ली मे नस्लीय शोषण एक आम बात है और वह इसके आदी हो चुके है, किंतु कोरोना ने उनकी जिंदगी दूभर कर दी है, क्योकि अधिकतर मकान मालिक उनसे अपना घर खाली करने को कहते है, खरीदारी के समय दुकानदार उन्हे सामान देने के मामले मे जान-बूझकर नजरअंदाज करते है और सड़क पर चलते वक़्त राहगीर उनके साथ सौतेला व्यवहार करते है”।
“…..”, “….”, “…..” (आई.सी.एन. इंटरनेशनल के प्रोटोकॉल की वजह से नस्लवादी शब्द नही लिखे जा सकते है), “चीनी”, “चाऊमीन” और “मोमो” जैसे भद्दे नामो से पूर्वोत्तर के नागरिको को दिल्ली मे पुकारा जाता है,उनकी साज-सज्जा और वेशभूषा की जमकर खिल्ली उड़ाई जाती है और खानपान पर मनगढ़ंत कहानियां सुनाई जाती है, दिल्ली मे आम धारणा यह है, कि “जहां पूर्वोत्तर के लोग रहते है, वहां पर कुत्तो की संख्या कम हो जाती है, क्योकि पूर्वोत्तर के लोग कुत्ते चुराकर फिर उन्हे पकाकर खा जाते है”,कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के सात दशक गुज़र जाने के बावजूद भी हम अपने देशवासियो को अपना (स्वीकार) नही सके और उनके साथ ग़ैरो-परायो जैसा व्यवहार करते है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘राजनीति शास्त्र और अंतरराष्ट्रीय संबंध’ संकाय (Faculty) मे असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुकी, अरुणाचल के भूतपूर्व एम.एल.ए. की पुत्री और समाज सेविका रीना (Ngurang Reena) ने दिल्ली मे पूर्वोत्तर के लोगो के शोषण के खिलाफ ज़ोरदार संघर्ष किया है,अभी रीना अरूणाचल मे महिलाओ के उत्थान और सशक्तिकरण के लिये कार्य कर रही है,वह दिल्ली मे घटी उनके शारीरिक शोषण की पहली घटना बताने से कभी चूकती नही है।नौरंग रीना 2009 की सर्दियो मे नई दिल्ली के चांदनी चौक मे एक दिन दोपहर 3 बजे रिक्शा पर सवार होकर घूमने निकली थी,जैसे ही रिक्शा ट्रैफिक जाम मे फंसा,तुरंत छह आदमी लपक कर रिक्शा के पास पहुंचे।फिर गुण्डे उनके शरीर से छेड़छाड़ करने लगे,रीना ने जैसे ही एक आदमी को मारना चाहा तो दूसरे ने उनका हाथ पकड़कर कहा;कि “तू हमारा क्या बिगाड़ लेगी?”कोई राहगीर उनकी मदद करने नही आया,रीना डर गई और घर आकर काफी देर तक रोती रही,फिर उन्होने गांव मे अपने पिता को फोन करके सारी घटना सुनाई,तो उनके पिता ने उन्हे “भागने के बजाय हालात से सामना करने की सलाह दी”,रीना ने अपने पिता की सलाह मानते हुये दिल्ली मे रहकर पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राओ के हो रहे शोषण के खिलाफ संघर्ष करने का निर्णय लिया।रीना के साथ जो हुआ वह निंदनीय तथा दुखद घटना थी और अधिकतर समाज-शास्त्रीयो और मानवतावादी बुद्धिजीवियो का मत है,कि “भारत मे नस्लवाद की समस्या भयंकर रूप ले चुकी है और दिल्ली एशिया की नस्लवादी राजधानी है”किंतु हमे रीना के दोहरे मापदंड से सहमत नही होना चाहिये,क्योकि उनके यह विचार एक-पक्षीय (one-sided) और भेदभाव-पूर्ण है,कि उत्तर भारत के लोग पूर्वोत्तर के लोगो के साथ भेदभाव करते है।
क्या पूर्वोत्तर के लोग अपने क्षेत्रो मे निवास कर रहे उत्तर भारतीयो के साथ भेदभाव नही करते है?क्या रीना ने कभी उत्तर प्रदेश और बिहार के ग़रीब मज़दूरो के आसाम और दूसरे पूर्वोत्तर के क्षेत्रो मे हो रहे शोषण और अपमान के खिलाफ आवाज़ उठाई है?
18 फरवरी 1983 को आसाम मे नेल्ली के स्थान पर आतंकवादियो ने नरसंहार (Nellie Massacre) किया था, जिसमे दस हज़ार से अधिक बंगाली मूल के बुजुर्गो, महिलाओ और मासूम बच्चो को कत्ल कर दिया गया या विकलांग बना दिया गया था।
क्या कभी रीना और इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) जैसी समाज-सेविकाओ ने उन निर्दोष मृत महिलाओ और मासूम बच्चो को इंसाफ दिलाने के लिये आवाज़ उठाई?
ऐसा ही दोहरा मापदंड हमे विश्व सुंदरी और फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के वक्तव्यो मे सुनाई पड़ता है,प्रियंका चोपड़ा अमेरिका मे अश्वेतो के ऊपर हो रहे अत्याचारो को लेकर तो बयान देती है, किंतु दोहरे मापदंड वाली इस महिला ने आज तक भारत मे अश्वेतो के विरूद्ध हुये अत्याचारो को लेकर कभी बयान नही दिया,बल्कि लिंचिंग और असहनशीलता जैसे मुद्दो पर हमेशा फासीवादियो का समर्थन किया है।
भारत मे नस्लवाद और रंगभेद जैसी समस्या सिर्फ दोहरे मापदंड अथवा दोग़ले चरित्र की वजह से ही होती है, क्योकि हम इसके विरुद्ध बोलते हुये थकते नही है,लेकिन हम अपने आचरण मे बदलाव नही करते है।ज़बान से तो हम कहते है,कि त्वचा के रंग को महत्व नही देना चाहिये,किंतु वास्तव मे हम त्वचा के रंग को लेकर बेहद संवेदनशील और हीन भावना से ग्रस्त है,इसलिये भारत मे गोरेपन की क्रीम बड़ी मात्रा मे बिकती है अर्थात “त्वचा के रंग को लेकर हमारा चरित्र दोगला है”।
[यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।
(अथर्ववेद)
जिस कुल मे नारियो की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल मे दिव्य गुण–दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते है और जिस कुल मे स्त्रियो की पूजा नही होती है, उस कुल मे सब कर्म निष्फल होते है।]
[हे नारी!
तू स्वयं को पहचान। तू शेरनी है, तू शत्रु रूप मृगो का मर्दन करने वाली है, देवजनो के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर।
हे नारी!
तू अविद्या आदि दोषो पर शेरनी की तरह टूटने वाली है, तू दिव्य गुणो के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर!
हे नारी!
तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनो को शेरनी के समान विश्वंस्त करने वाली है, धार्मिक जनो के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणो से अलंकृत कर।
(यजुर्वेद ५/१०)]
सनातन संस्कृति मे नारी की भूमिका की कल्पना कर्मयोगिनी के रूप मे की गई है और वैदिक साहित्य मे उसकी छवि वीरांगना की प्रतीत होती है,जबकि मेनका और विषकन्या जैसी खलनायिका वाली छवि के रूप मे नारी की सुंदरता का चित्रण अर्थात “सुंदरी की कल्पना” की गई है,फिर क्यो शादी के समय हम भारतवंशी सुंदर वधू (दुल्हन) खोजते है?
भाषण और लेखो मे तो हम नारी को देवी बताकर वर्णित करते है,किंतु वास्तव मे हम नारी को भोग-विलास की वस्तु समझते है,इसलिये हम “आंतरिक सुंदरता के बजाय नारी की बाहरी सुंदरता” अर्थात नारी की “मोहनी वाली छवि” की ही कल्पना करते है,क्या हमारी कथनी और करनी मे अंतर नही है?
भूमंडलीकरण के दौर मे उत्पाद की गुणवत्ता के बजाय मार्केटिंग, प्रमोशन और ब्रांडिंग को महत्व दिया जाता है, वस्तु की उपयोगिता को बढाकर विक्रय बड़ाने के बजाय आधुनिक मार्केटिंग प्रबंधन मे उसकी आकर्षक पैकिंग पर अधिक ध्यान दिया जाता है, उसी तरह महिला की “सीरत (गुणो) के बजाय उसकी सूरत” को अहमियत (महत्व) देते हुये उसे सजाने-संवारने मे वक़्त बरबाद किया जाता है।
क्या कभी आपने पच्चीस-तीस साल के सफल बेटे को यह कहते हुये सुना है,
कि “हे माँ!
तुम्हारी नाक चपटी और होंठ मोटे है,मेरे मित्रो की माँ बहुत सुंदर है,मै तुम्हारी कॉस्मेटिक सर्जरी करवाकर तुम्हे मधुबाला जैसा सुंदर बनवा देता हूँ, ताकि मेरे दोस्त मेरी प्रशंसा करे,कि इसकी माँ बहुत सुंदर है”।
भारतीय समाज मे हम किसी बेटे के मुंह से ऐसे शब्द सुनने की कल्पना भी नही कर सकते है,किंतु यही बेटा पहले अपनी बहन और फिर बेटी को गोरेपन की क्रीम लाकर देता है और कहता है; “अपना रूप-रंग निखारो ताकि लड़के वाले तुम्हे पहले ही बार मे पसंद कर ले”।
सिया-राम के मंदिर मे मर्यादा पुरुषोत्तम की मूर्ति वनवास के सादगी भरे वस्त्रो और राजा की वेशभूषा दोनो रूप मे होती है, परन्तु माता-सीता की मूर्ति हमेशा रानी जैसे सुंदर कपड़े और आभूषण पहने हुये होती है,जबकि माता-जानकी का अधिकांश जीवन आश्रमो मे ही बीता है,किंतु यहां भी हमारी “नारी के सुंदर रूप वाली सोच” का प्रभाव दिखाई देता है।
मंदिर मे देवी की सुंदर मूर्ति और घर मे पिता-भाई द्वारा लाकर दी गई फेयरनेस की क्रीम बचपन से ही बालिका के मन मे यह विचार पैदा करती है,कि महिला के लिये गोरा रंग और तीखे नैन-नक्शा होना अति आवश्यक है अर्थात “शारीरिक सुंदरता के बिना नारी अधूरी है”,रूप-रंग को लेकर यह हीन विचार धीरे-धीरे मनोविकार का रूप धारण कर लेते है,फिर धीरे-धीरे यह बालिका अपने अपने से अधिक सुंदर लोगो से नफरत करने लगती है और अपने से कम सुंदर लोगो का मज़ाक उड़ाने लगती है,यही से भेदभाव और नस्लवाद की बीमारी पैदा होती है।
छुआछूत भारतीय समाज की सबसे बड़ी कमजोरी अथवा बुराई है,इसी के कारण भारतीय समाज आपस मे बंटा रहा और सैकड़ो सालो तक आध्यात्मिक विश्वगुरू भारत विदेशियो का गुलाम रहा,सनातन धर्म के सभी महात्माओ और मनीषियो ने इस बुराई को दूर करने के लिये संघर्ष किया है,जिनमे “संत रविदास, संत कबीरदास और गुरूनानक” जैसे महान सूफी-संत, स्वामी विवेकानंद जैसे उदारवादी दार्शनिक, दयानंद सरस्वती जैसे चरमपंथी धर्मगुरु, महात्मा गांधी जैसे अहिंसावादी समाज सुधारक, राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी और डॉक्टर हेडगेवार जैसे राष्ट्रवादी शामिल है।
छुआछूत एक परजीवी की तरह है जो दूसरो का सहारा ढूंढता है अर्थात छुआछूत दूसरी बुराईयो के सहारे ही आगे बढ़ती है,भारत मे “छुआछूत पहले जातिवाद (Casteism) से जुड़ी थी,उसके बाद क्षेत्रवाद (Regionalism), फिर संप्रदायिकता (Communalism) और अब नस्लवाद (Racism) से जुड़ चुकी है”।
पूंजीवाद (Capitalism) और साम्राज्यवाद (Imperialism) दो बड़ी बहने है,जो बड़े प्रेम से अपनी छोटी बहन नस्लवाद और उसकी गोद ली बेटी छुआछूत का पालन-पोषण करती है अर्थात भेदभाव करने वाली सारी बुराइयां एक ही परिवार अथवा मानसिक-ग्रंथि से जुड़ी हुई है,दूसरे शब्दो मे हम इसे मनोरोग अथवा श्रेष्ठा (Superiority Complex) या हीनता (Inferiority Complex) की मनो-ग्रंथि कहते है।
महात्मा गांधी ने छुआछूत मिटाने के लिये अपना सर्वत्र बलिदान कर दिया, वह जीवन के अंतिम दौर मे भी दलितो की बस्ती मे उनके साथ रहकर समाज-सुधार का कार्य करते रहे, महात्मा गांधी एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रशिक्षण शिविर मे गये,तो वह यह देखकर हैरान रह गये कि वहां पर कोई छुआछूत नही होती थी।
कोरोना-वायरस के बाद पूर्वोत्तर के लोगो से ज़्यादा भारतीय मुसलमानो को निशाना बनाकर उनके साथ छुआछूत और भेदभाव किया जा रहा है,सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े छुट-भैय्या नेता और उनके संगठन मुसलमानो के विरुद्ध नफरत और छुआछूत फैलाने मे अग्रणी है,सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश प्रसारित किये जा रहे है, जिनमे सनातन धर्मियो से आग्रह किया जाता है,कि “मुसलमानो को ना तो अपने यहां नौकरी दो और ना ही मज़दूरी कमाने का अवसर दो” अर्थात मशीन, घर, गाड़ी की मरम्मत इत्यादि भी मुसलमानो से मत करवाओ।
छुआछूत और घृणा की पराकाष्ठा वाले वातावरण मे भी संघ से जुड़े “इंद्रेश कुमार” और “संजय जोशी” जैसे मनीषी मुसलमानो को अपने साथ खाना खिलाकर और चाय-पानी पिलाकर छुआछूत को मिटाने का पुण्य-कार्य कर रहे है,इसलिये हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम आगे आकर भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करे,क्योकि अगर पड़ोस मे आग लगी है,तो वह दिन दूर नही जब हमारा भी घर इस आग की लपेट मे आकर जल जायेगा,याद रखिये कि “सावधानी हटी दुर्घटना घटी!”
जब दूसरे का शोषण होता है तो हम चुपचाप तमाशा देखते रहते है,क्योकि हम सोचते है,कि हमे इससे क्या नुकसान है?
अर्थात यह हमारी समस्या नही है,किंतु जब हमारे साथ वैसा ही दुर्व्यवहार होता है, तब हमे मानवता याद आती है,हमे अपनी इस दोहरी मानसिकता अर्थात दोगले चरित्र को बदलना होगा,इसलिये हमे स्वयं ही इसकी शुरुआत करनी होगी।
हमे संकल्प लेना होगा कि “हम किसी के विरुद्ध भेदभाव ना करे”,उसके बाद अपने परिवारजनो और साथियो को सुधारना होगा,तभी हम बाहर वालो से भी आग्रह कर सकते है।
“बूंद-बूंद से ही सागर बनता है”,इसलिये अगर हम आज से ही यह निर्णय ले कि हम किसी भी रूप मे भेदभाव को सहन नही करेगे,तो एक महान आंदोलन खड़ा हो सकता है,जो मानव जाति के कष्टो को दूर करके उनकी पीड़ा को कम कर सकता है।इससे ज़्यादा महान और क्या कार्य हो सकता है?
क्योकि मध्यम-मार्ग की शिक्षा देने वाली हमारी भारतीय संस्कृति का महान दर्शन है, कि “नर ही नारायण है!”।
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)
(लेखक सर पर मैला ढोने वाली महिलाओ की मुक्ति और छुआछूत निवारण के लिये लगभग डेढ़ दशक से संघर्षरत है)

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